छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह 

हेलो दोस्तों , आज के इस “छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह” पोस्ट में हम छत्तीसगढ़ में अंग्रेज शासन के दौरना हुए प्रमुख आदिवासी विद्रोह के बारे में उल्लेख किये है। प्रतियोगी परीक्षाओं में  कभी कभी जनजाति विद्रोह से सम्बंधित प्रश्न पूछ लिए जाते हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ के किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप इस पोस्ट को एक बार जरूर पढ़ें ताकि आगामी परीक्षा में छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह से कोई प्रश्न पूछा जाये तो आप से वह न छूटे।

छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह 

हल्वा विद्रोह :

हल्वा विद्रोह डोंगर खेत्र में वर्ष 1774 ई. में अजमेर सिंह और दरियावदेव के बीच हुआ था। डंगोर पहले एक स्वतंत्र राज्य था , बाद में उसे बक्सर रियासत में शामिल कर के बक्सर का उपराजधानी बनाया गया। उसके बाद बक्सर के राजा दलपत सिंह ने अपने पुत्र अजमेर सिंह को डंगोर का राजा बना दिया। 1774 ई. में जब दरियादेव बक्सर राजा बना तो उसने डंगोर पर दवाब डाला। इसी वर्ष ही दरियावदेव ने डंगोर पर आक्रमण कर दिया परन्तु उसे हार का सामना करना पड़ा। युद्ध में पराजित हो कर दरियावदेव जयपुर राज्य भाग गया। वहां से उसने अपनी खोई हुई राज्य को फिर से पाने के लिए जैपुर राजा से संधि कर के 20,000 सेना इकट्ठा कर के डंगोर पर आक्रमण कर दिया और इस युद्ध में अजमेर सिंह के साथ कई विद्रोही मारे गए। इसी प्रकार हलवा विद्रोह का अंत हुआ।

परलकोट विद्रोह :

परलकोट विद्रोह छत्तीसगढ़ के बस्तर में 1825 ई. में हुआ एक आदिवासी विद्रोह था। इस विद्रोह का नेतृत्व परलकोट के जमींदार ठाकुर गेंदसिंह ने किया था। इस विद्रोह का कारन ब्रिटिश सरकार और मराठाओं के द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार के खिलाप था। अंग्रेज और मराठाओं ने आदिवासिओं से जबरन कर वसूलना , आर्थिक शोषण ,जमीन जब्त कर लेना जैसे अत्याचार करते थे। इसी अत्याचार के खिलाप गेंद सिंह नै आदिवासियों को अंग्रेज और मराठाओं के खिलाप विद्रोह करने को प्रेरित किया था।विद्रोहियों ने अंग्रेजों और मराठों के कई ठिकानों पर हमला किया और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। विद्रोह को रोकने के लिए अंग्रेजों और मराठों ने बड़ी सेना भेजी और अंततः विद्रोह को दबा दिया और विद्रोह के नेता गेंद सिंह को गिरफ्तार कर के 20 जनवरी 1825 को फांसी दे दी गयी। परलकोट विद्रोह के नेता गैंदसिंह को छत्तीसगढ़ का पहला शहीद माना जाता है।

तारापुर विद्रोह :

 एंग्लो-मराठा शासन द्वारा आदिवासी लोगों के ऊपर भारी कर और शोषण के खिलाफ दलगंजन सिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया गया था। तारापुर विद्रोह 1842 से 1854 तक बस्तर के तारापुर क्षेत्र में हुआ था। 1842 ई. में एंग्लो-मराठा अधिकारियों ने आदिवासियों पर एक नया कर से आदिवासि लोगों ने नाराज हो कर विद्रोह कर दिया और एंग्लो-मराठा अधिकारियों को पराजित कर दिया। अंततः एंग्लो-मराठा अधिकारियों को आदिवासी लोगों के मांग को स्वीकार करना पड़ा।

मोरिया विद्रोह :

दंतेवाड़ा के मोरिया जनजातिओं में दंतेश्वरी मंदिर में नरबलि देना का प्रथा प्रचलन था। इस बलि प्रथा को ब्रिटिश सरकार समाप्त करना चाहते थे और इसे रोकने की आदेश भी दिया था। इसके बावजूद यह परंपरा जारी रहा। अतः ब्रिटिश सरकार ने इसे रोकने के लिए दंतेश्वरी मंदिर में अपनी सेना तैनाद किया। हिड़मा माझी के नेतृत्व में मोरिया विद्रोहिओं में दंतेवाड़ा क्षेत्र से सेना हटाने की मांग की परन्तु उनकी बात अनसुनी कर की , इस से मोरिया जनजाति नाराज हो कर विद्रोह सुरु कर दिया। विद्रोह को देखते हुए ब्रिटिश अधिकारिओं ने और सेना बुलाकर विद्रोहिओं को दवा दिया।

लिंगागिरी विद्रोह :

लिंगागिरी विद्रोह 1856-57 में बस्तर में हुआ एक आदिवासी विद्रोह था। यह विद्रोह ध्रुवराव मारिया के नेतृत्व में हुआ, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था।ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष,आदिवासियों के शोषण ,धार्मिक उत्पीड़न विद्रोह का प्रमुख कारण था। 1857 में ब्रिटिश सेना ने ध्रुवराव मारिया को मारने के बाद विद्रोह समाप्त हुआ। लिंगागिरी विद्रोह को बस्तर का मुक्ति संग्राम के नाम से भी जाना जाता है।

कोई विद्रोह :

कोई विद्रोह सं 1859 कोई  जनजाति के द्वारा अंग्रेज और बाहरी ठेकेदारों के खिलाप साल बृक्ष काटने के विरुद्ध किया था। ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण बक्सर के जंगल को काटने की अनुमति बाहरी ठेकेदारों को दे दिया था। बाहरी ठेकेदारों ने अंगेजों के साथ मिल कर जंगल को अपने मनमानी से साल बृक्ष को काटने लगे। इस से कोई आदिवासी भड़क उठे और विद्रोह कर दिया , और इस विद्रोह में कई ठेकेदार मारे गए। अंततः अंग्रेज सरकार को मजबूर हो कर ठेकेदारी प्रथा समाप्त समाप्त करना पड़ा। 

भोपालपट्टनम संघर्ष :

अंगेज अधिकारी जे.टी. ब्लांड को जगदलपुर प्रवेश के विरुद्ध में गोंड जनजाति द्वारा 1795 ई. में  भोपालपट्टनम संघर्ष  हुआ था। विद्रोहियों ने जगदलपुर पर हमला किया और अंग्रेजों के कार्यालयों को जला दिया। उन्होंने अंग्रेज सैनिकों को मार डाला और उनके हथियार लूट लिए। अंग्रेजों ने विद्रोह को दबाने के लिए बड़ी सेना भेजी अंग्रेज सेना ने विद्रोहियों से कई बार युद्ध किया, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा।अंत में विरोध के वजह से अधिकारीयों को वापस लौटना पड़ा। 

महान भूमकाल विद्रोह :

वर्ष 1910 में बस्तर क्षेत्र का यह एक बड़ा और व्यापक आंदोलन था ,जिस कारण इस विद्रोह को “महान भूमकाल विद्रोह” कहाँ गया। गुंडाधुर , कुअँर बहादुर सिंह , बाला सिंह और दुलार सिंह अदि विद्रोही से गुंडाधुर प्रमुख थे। इस विद्रोह का कई प्रमुख कारण जैसे अंग्रेजों के द्वारा रुद्रप्रताप देव को राजा पद दे कर लाल कालेन्द्र सिंह और राजमाता सुवर्णकुंवर देवी की उपेक्षा की गया , बेगारी प्रथा और आदिवासियों को जबरन धर्म परिवर्तन करवाना अदि।

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दोस्तों इस पोस्ट हम 10 महत्वपूर्ण प्रश्न का एक क्विज तैयार किये हैं। इस क्विज टेस्ट को आप एक बार जरूर देखें ताकि आप छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह के सभी महत्वपूर्ण जानकारी को याद रखने में आसानी हो।

छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह क्विज टेस्ट

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दोस्तों में आशा करता हूँ की आप को हमारा यह “छत्तीसगढ़ के जनजाति विद्रोह ” पोस्ट पसंद आया होगा।आप को हमारा यह जानकारी कैसा लगा आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं।  धन्यवाद।

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